शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

Labour in India



कभी कभी आप अनुभव करते है की शायद आप जो देख रहे है वो एक दम अलग सा अहसास है, जब आप सिर्फ किसी बात को सोच सकते है महसूस कर सकते है पर शायद  आप उस मैं/ उस के लिए  कुछ कर नहीं सकते, या कर नहीं पाए मैं तो एसा मानता हु की  एसा कई बार होता है पर आप के साथ एसा होता है या नहीं ये आप से बेहतर कोई नहीं बता सकता...

   बात कुछ दिन पहले की  मैं अपने ऑफिस के काम से लेबर ऑफिसर से मिलने गया हुआ था तभी मैंने एक व्यक्ति को देखा  जिस की उम्र करीबन 45 -50 के बीच होगी और जो जोर जोर से रो रहा था, उस के एस तरह से रोने से मेरी थोड़ी सी  जानने की अभिलाषा हुई की आखिर  ये इस उम्र का आदमी एस तरह से जोर जोर से क्यों रो रहा है, थोडा सा नजदीक जाने से पता चल की, उस ने अपनी एक कंप्लेंट लेबर ऑफिसर मैं दी हुई है और लेबर ऑफिस वाले उसे कई दिनों से चक्कर लगा रहे है पैर कुछ भी फेसला नहीं हो रहा है वो delhi  मैं अकेला रहता है और उस ने अब से ३ महीने से यहाँ पर कोम्प्लिनेट करा राखी है पैर कुछ हो नहीं रहा है वो रो रहा है की उस के पास जॉब नहीं है खाने को पैसा नहीं है, मैंने उसे बड़े ध्यान से देखा पेरो मैं टूटे हुए जूते पुरानी पेन्ट, एक उधडा हुआ सा स्वेटर, बड़ी हुई दाड़ी, और सफ़ेद बाल, बड़ी ही कायल काया, मैंने जानने की कोशिस की आखिर ये तीन बुध आदमी रो क्यों रहा है तो पता चला की एस आदमी को एक लाला (दुकानदार)  के साथ कम करते हुए 32  साल हो गए और उस आदमीं की तनखा आज भी सिर्फ और सिर्फ 3500 /- महिना है, और वो  एस बात को रो-रो कर लेबर ऑफिसर को बता रहा था!




   सर मैं इन  के साथ तब से काम कर रहा हु जब मैं 16  साल का था और अब मेरे को इन के साथ कम करते हुए 32  साल हो गए है और आज भी ये मुझे 3500 /- महिना तनखा देते है, और मैं सुबह 8  बजे से रात को दुकान बंद होने तक इन के लिए कम करता हु ये मेरे को हफ्ते मैं कोई छुटी भी नहीं देते है! जिस दिन दुकान बंद होती है मैं एन के घर पर जाता हु घर के काम करने के लिए.


सिर्फ साल मैं 20 -25  छुट्टी देता है उसे अपने घर (गाँव)  जाने के लिए, पर  एसा नहीं है की वो उस आदमी को उन  दिनों  की तनखा देता है. जिस दिन कम करेगा सिर्फ और सिर्फ उस दिन के ही पैसे मिलंगे.


 तब सोचा जब हमारे देश की राजधानी मैं ये हाल है तो और राज्यों का क्या हाल होगा, आज भी हम न्यूज़ पपेरो मैं ये पड़ते है की देल्ही के कई छेत्रो मैं छापे मरे गए तो पता चला की वह पर बाल मजदूरी चल रही थी या उनको बन्दुआ मजदूरों की तरह से काम कराया जा रहा था. या जो लोग कम कर रहे है उनका शोषण हो रहा है उनके काम के घंटो को बड़ा दिया जाता है उनको उनका सही वेतन नहीं मिलता, और भी बहुँत सारी चीजे है जो आप और मैं देखते है, और अब एसा नहीं की ये रिवाज सिर्फ और सिर्फ इंडियन कंपनी मैं हो, अब तो देखा देखी MNC  कंपनी ने भी ये सुरु कर दिया है और करे भी क्यों न जब सब कुछ इतना आसन है.


असल मैं, दिल्कते दो है
  1. पहली दिकत है लोगो का अन्पड है, जागरूक नहीं नहीं 
  2. दूसरा गरीबी 
अब एसे मैं क्या किया जाये, बहुँत सारी दिकते है, वेसे तो सरकार ने सब जगह पर लेबर ऑफिसर बनाये है अगर आप का शोषण  हो रहा है तो आप जाये और अपनी रिपोर्ट करवाए, रिपोर्ट लिखी , और करवाई भी जाती है पर मजदूर को सायद ही कुछ मिले क्योकि इसका असली मजा भी लेबर ऑफिसर और उनिओने  वले ही ले लेते है दोनों आपस मैं बात कर लेते है और मामले को एसे ही रफादफा करवाने मैं मैं कामयाब हो जाते है.रह जाता है बेचारा मजदूर, मजदूर बोले तो मजबूर... जिन्दगी एसे ही कट जाएगी समां इसे ही बुझ जाएगी, क्या लाया था साथ मैं  जो ले जायेगा, जो मिले उसी मैं खुस रह.

अगर आपकी वयवस्था ही ऐसी है तो आप केसे न्याय की बात कर सकते है एसे एक नहीं आपको कई लोग मिलेंगे पर आप सायद उन के लिए कुछ भी न कर सके! बात वयवस्था की है हम कहते है कहना आसन है पैर कर के दिखना बड़ा ही मुस्किल,  की सब कम रूल्स की हिसाब से हो  प्राइवेट सेक्टर मैं,  ताकि वह पर मजदूरों का शोषण  न हो.

ये एक question है आप और मेरे लिए अगर आप के कुछ सुझाव  या आप मेरी बात से इत्फाख नहीं रहेते हो तो अपने सुझाव मेरे को जरूर दे क्योकि जब आप मेरे को अपने सुझाव देते है,  तो मेरा ज्ञान भी बढता है और वेसे भी ज्ञान जहा से भी मिले ले लेना चाहिये!!!


सोमवार, 9 अप्रैल 2012

"Hamara Uttrakhand"

                                                                                                          दिनाक:- 09/09/2012

हमारा उत्तराखंड,

दोस्तों बड़े दिनों के बाद लिखने का मोका मिला तो बहुँत सारे  टोपिक दिमाग मैं आ रहे थे पैर समझ नहीं पा रहा था की किस पर  लिखना  सुरु करू क्योकि मेरी हरदम ये कोशिस रहती है की समसामयिक घटनाओ पर अपना ब्लॉग लिखू !
इस से पहले मैं अपना बलोग लिखना शुरु करू मैं सबसे पहले अपने पढने वालो का धन्यवाद  करना चाहता हु जिन्होंने मेरे बोलग को इतना पयार दिया, सच बोलू तो ये मेरे लिए मेरी उर्जा का साधन है, आप कुछ भी लिखते रहे अगर आप के पास आप  जेसे पाठक नहीं हो तब तक लिखने  का कोई फायदा नहीं है! इस लिए एक बार फिर से आप सभी को  तहे दिल से धन्यवाद!!!!

तो आज का ब्लॉग  मैं अपने राज्य जिस का मैं मूल निवासी हु उस के बार मैं बताना चाहता हु, हिमालय की उची उची पर्वत मालाओ से घिरा "उत्तराखंड " देव भूमि जिस के कण कण मैं भगवान् का वास है, बहुँत ही न्रिमल पावन भूमि, हिन्दुओ के कई विश्व प्रसिद मंदिर, प्रसिद नदिया इस  राज्य मैं है! इस राज्य को सुन्दरता भगवान ने उपहार सरूप दी है, यहाँ के लोगो की सादगी, इमानदारी, और मेहनत के लिए पुरे देश मैं विख्यात है.

अब मैं बात करूँगा उन पहलुओ की जिस के बारे मैं हम बात तो करते है पर  सायद इतना ध्यान नहीं दे पते जितना देना चाहिये और एसा होना कोई बड़ी बात नहीं है क्योकि सब लोग इस भागते दोर मैं बड़े ही व्यस्त है, पर अपनी व्यस्ता के बीच थोडा सा समय अपने मूल राज्य के लिए चाहता हु! इस बोलग के माद्यम से मैं उन लोगो तक भी अपने राज्य के बात मैं बताना छठा हु जिन्होंने सिर्फ आज तक इस राज्य के बारे मैं सुना है पैर सायद कभी इतना ध्यान नहीं दिया,

वेसे मैं इस राज्य के बारे मैं अपने आने वाले बोलग मैं भी लिखता रहूँगा पर अभी मैं इस राज्य के बारे मैं कुछ मुख्य  बाते बता रहा हु. उम्मीद करता हु की आप जरूर इस को पसंद करेंगे.




उत्तराखंड राज्य 
"उत्तराखंड राज्य का उदय 9 नवम्बर 2000, को भारत की 27 राज्य के रूप मैं हुआ, यह राज्य भारत का 18 सबसे बड़ा राज्य है,  इस राज्य के गठन मैं इस परदेश के लोगो ने बड़ी कुर्बानिय दी और वो कुर्बानिय पता नहीं क्यों, कभी मेरे को लगता ही की हम उन लोगो की कुर्बानियों को बेकार कर रहे है, आज राज्य बनाने के 12 साल बाद भी हम वही पर  है जहा से हमने चलना स्टार्ट किया था, सरकारे बनती रही, विकास के नाम पर कुछ काम भी हुआ, हुआ पर  सायद जितना होना चाहिये उतना नहीं हुआ, उस का एक मुख्य कारन है /जो की सरकार बताती है की हम पहाड़ी राज्य है यहाँ पर  विकास पर  जायदा पैसा खर्च होता है, पर क्या इस तरह से अगर अपनी  कोम्जोरियो को बताते रहेंगे तो कभी हमरा राज्य विकास कर पायेगा सायद नहीं.


उत्तराखंड अर्थव्यवस्था:-
उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन उद्योग पर निर्भर करता है. उत्तराखंड हिमालय की तलहटी पर स्थित राज्य है, जो सब से दुनिया भर में इस तरह राज्य के लिए पैसे लाने के पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है,  कई पहाड़ी स्टेशनों को भी हम थोडा सा विकास कर ले तो हम इनको   पर्यटन उद्योग मैं  शामिल कर सकते है. पहाड़ी स्टेशनों के अलावा, वन्य जीवन को भी पर्यटन के लिए एक प्रमुख आकर्षण रहा है पर्यटकों के लिए कॉर्बेट नेशनल पार्क और प्रसिद्ध टाइगर रिजर्व भी आकर्षण का केंद्र है!

अगले सबसे महत्वपूर्ण उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था के लिए योगदान कृषि क्षेत्र है. 2002-03 की जनगणना के अनुसार देश की 5,671,704 हेक्टेयर के आसपास की खेती की थी. अनाज, दालों, तिलहन, गन्ना और प्याज यहां उगाई प्रमुख फसलें हैं. उत्तराखंड की आबादी का बहुमत के बाद से कृषि क्षेत्र में कब्जा कर लिया है, कृषि उत्तराखंड अर्थव्यवस्था में राजस्व की शीर्ष योगदानकर्ताओं के बीच है.

इस के वाबजूद भी सरकार का कोई ध्यान कृषि की तरफ नहीं नहीं, आज भी किसानो , को टाइम से पानी , सही बीज , उर्वरक नहीं मिल पा रहे है, न ही उनको मोसम की सही जानकारी मिल पति है, जिस के कारन की किसान की शिस्ती आज भी उत्तराखंड  मैं सोचानिये है.

एक अन्य महत्वपूर्ण घटक है जो उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है अपने खनिज संसाधनों है. राज्य में चूना पत्थर रॉक फास्फेट, डोलोमाइट, मैग्नेसाइट, तांबा ग्रेफाइट, साबुन पत्थर, जिप्सम और कई दूसरों जैसे खनिजों के बड़े संसाधनों के होते हैं. इन खनिजों में से कई भारत का निर्यात कर रहे हैं जिससे उत्तराखंड अर्थव्यवस्था अधिक राजस्व दिलवाता है.


2003 में, निवेशकों के लिए उदार कर लाभ के साथ राज्य के लिए एक नई औद्योगिक नीति शुरू किया गया था कि पूंजी निवेश का एक विशाल लहर करने के लिए नेतृत्व किया गया है. SIDCUL, उत्तराखंड राज्य औद्योगिक विकास निगम राज्य के दक्षिणी परिधि में सात औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना की है, जबकि पनबिजली बांधों के दर्जनों के ऊपरी भाग में बनाया जा रहा है

नीचे दिए गए आकडे (per -Capita Income चार्ट है )








उत्तराखंड राज्य विकास की समस्या:-उत्तराखंड के लोग जो मुख्य समस्यों से जूझ रहे है वो निम्लिखित है.

पानी की समस्या:-

आजादी के ६३ साल बाद भी उत्तराखंड के गाँव मैं पानी की समस्या दिन प्रति दिन भयानक रूप लेती जा रही है और किसी को एस की सुध नहीं है गाँव मैं जितने भी प्र्कार्तिक सोत्र थे या है वो सुकते जा रहे है जिस के कारन लोगो का गाँव मैं रहना मुस्किल होता जा रहा है, पानी हमारी मूल आवश्कता है और हमारी सरकार हमे अपनी तक नहीं दे पा रही है, जिस के कारन लोगो को भारी पानी की समस्या से दो चार होना पद रहा है, कुछ गाँव मैं तो 3 -4  दिन मैं एक बार पानी आता है.


आधा अधुरा विकास:-

 अगर बात करे  विकास की तो समझ मैं नहीं आ रहा है, की ये विकास आधा अदूर क्यों हो रहा है सरे विकास के कम पहले से विकसित छेत्रों मैं चल रहे है, जहा पर  विकास नहीं हुआ है वहा अभी भी नहीं हो रहा है, उसके कई करना हो सकते है उनकी दुरी उनकी भागोलिक इसथी और लोगो को जानकारी का आभाव, इसे कोन दूर करेगा, ये सरकार का काम है की लोगो को उनके अधिकारों के लिए जागरूक कर, गाँव को जायदा अधिकार दिए जाये. सव्लाम्बी बनाने मैं उनकी मदद की जाये.


बिजली की समस्या:-
आज भी उत्तरांचल के गाँव मैं बिजली की समस्या बनी हुई है आजादी की ६३ साल राज्य बन्ने के १२ साल बाद भी उत्तरांचल की कई गाँव मैं आज तक बिजली की कनेक्शन नहीं पहुच पाए है, और जिन गाँव मैं बिजली है भी तो ये कोई नहीं बता सकता की ये कब लुका छुपी का खेल पहुच जाये, और मैं एस बात को विडंबना ही मानता हु की जिन गाँव मैं बिजली तो नहीं पैर व पैर फ़ोन पहुच गए है, जो की पिछले १० सालो मैं हमरे देश मैं आया है, कब सरकार को ये लगेगा की फ़ोन, से जायदा जरूरी है बिजली एस के कारन लोगो अपने बच्चो  को पड़ा नहीं पा रहे है! और अब तक दुनिया से कटे रहते है, 


सड़क:-

अगर बात करू सडको की तो आज भी उत्तराखंड के करीबन 65 % गाँव को सरकार सडको से नहीं जोड़ पाई है, जहा पर सड़के गयी भी है वह पर सडको की सुध लेने वाला कोई नहीं है सड़के सिर्फ नाम की रह गयी है, जिस के कारन पहाड़ी छेत्रो मैं रहने वाले लोगो तो आज तक बहुँत सारी समस्यों से दो चार होना पड़ता है. आज भी उनको अपनी जरूरत की चीजो को बहुँत दूर तक अपने सर पैर उठा कर ले के जाना पड़ता है.


चिकित्सा व्यवस्था:-

उत्तरखंड मैं आज भी चिकित्सा व्यवस्था की भारी कमी है, खास कर गाँव के लोगो को जहा पर  की किसी प्रकार की सुविधाओ का आभाव है, हॉस्पिटल पहले तो है नहीं अगर है भी तो 15 -20  किलोमीटर से जायदा दूर है अगर आप किसी तरह से हॉस्पिटल पहुच भी गए तो वह पैर अगर आप को डोक्टर मिल जाये तो ये आपकी बड़ी ही खुस नसीबी है, डॉक्टर साहब ने देख लिया तो हॉस्पिटल मैं दविया नहीं मिलेंगी, सरकार ने 108  नंबर से एक अमबुलंस वयवस्था सुरु करी है पर उस मैं मरीजों को कितना फायदा हो रहा है ये एक परशन चिन्ह है अपने आप पैर.


शिक्षा का स्तर:-
 अगर की सिक्षा के स्तर की बात करू तो भले ही उत्तराखंड को शिक्षा का हब कहा जाता है पर आप और मैं ये जानते ही की यह की प्रकार का हब है, नाम बड़े और दर्शन छोटे गाँव मैं पढने के लिए स्कूल नहीं है वेसे सरकार ने कोसिस तो करी पैर सायद अभी भी बहुँत कुछ करने की जरूरत है, शिक्षा के स्तर को सुधरने के लिए सबसे पहले वह पर सही शिसको की भारती जरूरी है! और स्कूलों की मूल्भुँत अवस्क्ताओ को पूरा करने की जरूरत है!




रोजगार:- 




अगर समस्याओ की बात करे तो सब से बड़ी समस्या रोजगार की क्योकि जितने भी औद्योगिक चेतर बनाये गए वो सभी पहाड़ी इलाकों मैं नहीं है वो सब समतल भूमि पैर है जब तक हम एस विकास को उनलोगों तक नहीं पंहुचा पा रहे अह जिन को इस की असल जरूरत है, जब तक हम उन जरूरतमंदो को एन सुविधाओ को आम आदमी तक नहीं पंहुचा पाएंगे तब तक आप किसी भी तरीके की उथान की बात नहीं कर सकते.  
उत्तराखंड अर्थव्यवस्था भी अपनी लघु उद्योगों पर निर्भर करता है, हालांकि वे उच्च राजस्व प्रदान नहीं करते. राज्य बन्ने के पश्चात अब इस मैं थोड़ी सी तेजी आई है पैर यह भी तेजी सिर्फ और सिर्फ मैदानी भागो मैं आई है जब की उत्तराखंड की मुख्य आबादी का बड़ा भाग गाँव मैं रहता है, जहा पर की अभी भी बहुँत कुछ करने की जरूरत है जब की हम जानते है की हमरे पास किसान और पयटन ही हमारे बड़े आय के साधन है तो हमे उन पैर और जायदा कम करने की जरूरत है, किसनो के पास आज भी बारिश के अलावा कोई और पानी का साधन नहीं है, लेकिन सरकार मैं बेठे हुए लोगो को इस बात से कोई फरक नहीं पड़ता है, जितने भी प्रसिद पयटन स्थल है वह पैर सफाई के सही उपाय नहीं हो रहे है जिस के कारन वहा पर भी अब गंदगी का जमवाडा हो गया है!

पलायन की समस्या:-
यह एक सिक्के के दो पहलु जेसी है बात है जब तक हम विकास के कार्यो को गाँव तक नहीं पंहुचा पाएंगे, गाँव मैं और अधिक आर्थिक कार्यो को रफ़्तार नही दे यानेगे तब तक उत्तराखंड के गाँव से पालयन की समस्या बनी रहगी और एस तरह से हमें अपने उत्तराखंड से पालयन करना पड़ेगा ही, अगर मैं आज उत्तरखंड मैं रोजगार की बात करू तो जो लोग सरकारी नुकरी करते है उन मैं सब से बड़ा हिस्सा फोज मैं भर्ती हुए लोगो का है, और दुसरे जो लोग शिक्सक की नोकरी कर रहे है उस के सिवा आज भी गाँव मैं रोजगार का कोई साधन नहीं है, एसे मैं गाँव से पालयन होंगा सभाविक है! पालयन को और बदने मैं हमारी शिक्षा वय्व्स्ता का भी बड़ा हाथ है, जिस के कारन भी लोग गाँव से सहरो की तरफ पालयन करने लगे है!



गर मैं बात करू भारत के अन्य पहाड़ी राज्यों की, तो मैं देखता हु की उत्तरखंड राज्य उन राज्यों के मुकाबले आज भी बहुँत पिछड़ा हुआ है, आप चाहे रोजगार की बात करे, चाहे विकास की बात करे चाहे शिक्षा की बात करे, अब भारतीय रेल को ही देख लो आज तक कोई भी रेल उत्तराखंड के किसी गाँव को नहीं जोड़ पाई है, जब की अगर हम देखे तो हम पाएंगे की हमरे हमारे जेसे और राज्य जेसे की हिमाचल परदेश, नोर्थ ईस्ट के राजोय मैं हमारे  तुलना मैं कही जायदा विकास है! एस के पीछे क्या बात है वह के सरकारों की इछा सक्ति, और दूसरा उन राज्यों का मुख्य धारा मैं न होना, कभी कभी तो एसा लगता है की राज्य सरकार तो पैसे का रोना रो देती है की उनके पास पैसे नहीं है विकास के कार्यो को करने के लिए और केंद्र सरकार एस तरफ कोई ध्यान  नहीं देती है, एस पर मुझे एक बात समझ मैं आती है की अगर "बचा नहीं रोता है तो माँ भी दूध नहीं पिलाती है अगर एसा हो तो क्या हमें भी रोने की आदत डालनी पड़ेगी, और हमें भी बिहार, झारखंड, नोर्थ ईस्ट की तरह से मोवोवादी या फिर नक्सली बनना पड़ेगा, क्या तब सरकार जागेगी, क्या तब विकास का काम होगा, क्या तब मिलेगा उत्तरखंड के लोगो को सम्मान, मैं एसा बिलकुल नहीं चाहता की हमारे लोग नक्सली बने, माओवादी बने, पर शायदं सरकार का रविया एसा ही रहा तो वो दिन भी दूर नहीं जॉब हम मैं से कुछ लोग एस रस्ते को भी अपना लेंगे...

इस लिए ये सोच है हम सभी के लिए और उन सभी राज्यों के लिए जो विकास की दोड़ मैं पिछाड रहे है, जरूरत है समुचित विकास की सभी राज्यों मैं....

अगर आपके इस बोलग से सब्म्बंती कुछ भी विचार हो तो आप अपना प्रति उत्तर जरूर लिखे मैं आपके दिए हुए, सुझाव का स्वागत करता हु....