शुक्रवार, 22 जून 2012

Childhood,


         


                       बीचके दिनों मैं बड़ा ही वयस्त था तो कोई भी बोलग नहीं लिख सका पर, पर आज गर्मी के बीच अपने नये घर पर छत पर बैठ कर कुछ लिखने का मोका मिला तो सोच की कुछ एसा लिखू की आप भी अपने पुराने दिनों को ये बात याद करे और ये बात आप  को अपनी सी बात लगे!

बात तब की जब मैं 4 साल की उम्र मैं गाँव से डेल्ही आया था और आज मैं 29 साल का हो चूका हु करीबन 25 साल जीवन के मैं मैं डेल्ही मैं और नॉएडा मैं गुजार चूका हू पर लगता है की जेसे कल की ही बात है, सायद हा भी और सायद नहीं भी, जब सोचता हू बीते हुए कल के बारे मैं तो बड़ा ही अजीब सा और हेरान करने वाला लगता है, क्या सुच मैं 29 साल का हो गया हू टाइम इतनी तेज़ी से गुजार रहा है और मैं इतना टाइम अपने पीछे छोड़ आया हू  और मैं डेल्ही मैं 25 साल गुजार चूका हू तो पता चलता है हा यार ये  तो सच है!
  
       पर मैं जब सोचता हू की मैं एन 25 सालो मैं क्या खोया और क्या पाया तो बहुँत सारी बाते दिमाग मैं आती  है और उस मैं जो सब से पहली बात आती है और वो है है मेरा घर जहा आप ने अपना बचपन,  कीमती टाइम दिया है तो दोस्तों एन 25 सालो मैं 5 घर अभी तक बदल  कर चूका हू बड़ा ही अच्छा लगता है जब नये और बड़े घर मैं जाते है पर कुछ ऐसा है जो आपको कुरेदता भी है मैं ऐसा महसुसू करता हू और सोचता हू की आप भी ऐसा ही महसूस करते होंगे,
और वो है आपकी पुराने घर की यादे और आप सब से जायदा जो याद आते है वो है आपके बचपन के पडोसी और आपके बचपन के दोस्त पुरनी दुकाने बचपन का  स्कूल, एक बार की बात है जब मैं अपने पुराने स्कूल की तरफ से निकला तो सोच क्यों न अपने पुराने स्कूल मैं होता हुआ जाऊ देखू  और अपनी पुराणी यादो को की केसा हो गया है स्कूल तो देखा तो बड़ा ही अजीब सा लगा सब कुछ बदल गया था, समय के साथ सब बदल जाता है पैर कभी कभी हम अपने लिए इतने सवार्थी हो जाते है की बदलाव को एक्सेप्ट करना ही नहीं चाहते, और मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ मैं उस स्कूल मैं सारी जगह पर घुमा और याद करता रहा की यहाँ पर ऐसा था और यहाँ पर ऐसा था पर अब सब कुछ बदल गया था, न वह पर क्लास थी न वो तेअचेर न वो पार्क न वो गाते और न वो चूरन वाले अंकल, वो दुकाने जहा से हम २५ पेसे मैं ५ टाफी लेते थे अब वो भी बंद हो चकी थी या अब वो बदल गयी थी, मैं दिल भर आया और मैं सिर्फ ये सोचता रहा की, क्या यही ही नियति है!u
शाम को छुपान चुअपी, चैन, उच्च नीच का पपदा, टीवी , बॉक्स , पिठू, पकड़म पकड़ाई , चोर पोलिसे , तोता उड़ा, साप सीडी , बिज़नस, कलर , वाला गेम खलते थे, और थक कर चूर हो कर सो जाते थे.

तब पैसे का paise  हुआ करता था! एक रुपये मैं पीली वाली दो ice -cream आती थी और दूद वाली 1 रुपये मैं, तब कॉमिक्स हम किराये पर ले कर पड़ते थे और स्कूल मैं जा कर उस कोमिकास के बारे मैं बात करते थे और सन्डे के दिन मैं पित्चुरे आती थी उसे सारा परिवार साथ मैं देकता था, सन्डे के दिन महाभारत आता था सभी पुराने लोग उसे सुच समझ लेते थे, सुच मैं क्या दिन थे थोड़े से कोम्मेरिकल अदद आते थे और फिर पूरी पित्चुरे.

एस भागती दोड़ती जिन्दगी मैं कुछ पल अपने लिए निकालो तो आपको पता चलेगा की आप ने क्या खोया और क्या पाया.... कुछ पहलु है जो आप भी महसूस करेंगे और आप भी मेरी तरह से स्वार्थी हो जाना चाहेंगे... की कास ये टाइम दुबारा से लोट कर आ जाये!!!