दोस्तों महिना सावन का, मस्त फुहारों का चारो तरफ हरियाली का मंजर, और आप जानते है की हमारे मूड मैं मोसम का कितना बड़ा रोल होता है, ये तो आप से बेहतर कोन बता सकता है! तो बात सावन की "सावन" का महिना और बात झूलो की, जो अब सिर्फ सोच मैं रह गए है, वो आम की डाली वो नीम की डालियों मैं झूलो का होना वो सहेलियों के साथ मुस्कारना मस्ती और मस्ती, कच्ची अमिया का खाना, चिडयो का काह्चाहना एसा लगता है जेसे बीते हुए टाइम की बात हो गयी क्या सच मैं एसा है आपको एसा लगता है क्या???
वेसे मेरे को इस "सावन" से सुभा मुद्गल का वो गीत याद आता है:
अब के सावन इसे बरसे बह जाये रंग मेरी चुनर से... कितनी हसीं पंक्तिया सच मैं जब सावन मैं बारिश हो रही हो और ये वाला गाना चल रहा हो तो आप को सच मैं पता चलेगा आप ने क्या मिस कर दिया टाइम के साथ, सावन मैं भीगने का क्या मजा है, जब आप मुस्त बारिश के ठंडी ठंडी बूंदों मैं नहा रहे हो और मस्त बारिश हमें भीगा रही हो... जब हम स्कूल मैं पड़ते थे तो माँ हमें भीगने से मना करती थी, बोलती थी की तबियत ख़राब हो जाएगी और हम बारिश को सिर्फ खिडकियों से देखा करते थे, और खिड़की मैं बेठ कर आने जाने वालो और भीगने वालो के बारे मैं सोच कर बड़ा अच्छा महसूस कर रहे होंगे पर हम भी कम उस्तात नहीं थे जब भी सावन का महीना सुरु होता था हम अपनी स्कूल बैग मैं एक प्लास्टिक की पन्नी रख लेते थे और जब भी स्कूल से आते हुए बारिश होती थी तो मोका बिलकुल भी नहीं गवाते थे, मस्त बारिश का मजा घर आ आकर "माँ आज तो मैं भीग गया एक दम से बारिश सुरु हो गयी", और मैं ये मांगता हु की सिर्फ मैं एसा नहीं करता होऊंगा आप मैं से भी कुछ लोग इसे होगे जो एसा करते होंगे और अपनी लाइफ मैं बारिश के पानी से रंग भरते होंगे, जेसे गीत मैं कहा की "बह जाये रंग मेरी चुनर से" वो रंग चुनर से निकल कर आप को भी रंग देती है, फिर देखो सब कुछ कितना हसीं लगता है!
अब तो बारिश मैं भीगे हुए भी जमाना हो गया है, ऑफिस से घर और घर से ऑफिस, बस इतनी सी दुनिया, बारिश नहीं होती तो "क्या यार बरिश नहीं हो रही है इतनी गर्मी हो रही है" बारिश हो जाये तो "यार बारिश ने भी बड़ा दिमाग ख़राब कर रखा है साला ऑफिस आते जाते हुए सुरु हो जाती है कही आ जा भी नहीं सकते" अब तो हमें एसा लगता की सब कुछ हमरे हिसाब से हो पर सायद अभी ये हमरे बस मैं नहीं है, आने वाले टाइम मैं एसा हो जाये तो कोई बड़ी बात नहीं है,
इंदर देव भी अब थोड़े से मुड़ी हो गए है पहले तो बारिश नहीं करते और जब करते है तो बाड आ जाती है, और ये तो नियति हो गयी है, एस के लिए हर कोई एक दुसरे को गलत बता रहा है कोई कहता है की इंदर देव मस्ती के मुड मैं है कोई कहता है की गोलोबल वार्मिंग हो गयी है एस लिए एसा होता है कोई कहता है की MCD और NDMC के इंतजाम टिक नहीं है, पर आप और मैं भी जानते है इस के लिए कोई नहीं हम सब जीमेवर है वो बात अलग है की हमरी तो आदत हो गयी है अगर कुछ अच्छा तो हम ने किया अगर कुछ बुरा तो आप ने किया, अब किसी को तो गलत बताना है और अपने को सही और एसा तो करना ही पड़ेगा क्योकि आप कभी गलत हो ही नहीं सकते, हा हाहा हा ....अब किसी ने ये तो बताया नहीं की आप ने जो चिप्स खाने के बाद रेपर को रोड पैर फेक दिया था उस ने नाली बोलक कर दी, घर का कूड़ा सीधे खिड़की के रास्ते दुसरो के घर के आगे फेक दिया और उन भी साहब ने उसे अपने घर के सामने से हटा कर रोड के तरफ कर दिया, बेचेआरे बदनाम मकद और NDMC वाले अब करे भी तो करे क्या कई बार लोगो को समझाने की कोसिस की लोग को जागरूक करने की कोसिस की, और एक बात एक दम से मेरे ध्यान मैं आई हमारी डेल्ही सरकार ने कुछ दिन पहले एक कानून पास किया की कोई भी दुकान से आप को पोलोथिन नहीं मिलेगी, मस्त वाला मजाक था किसने एस कानून को फोल्लो किया आप से जायदा कोई नहीं बता सकता, थोड़ी से बात ग्लोबल वार्मिंग की, दोस्तों मुझे पक्का यकीन है आप को एस के बारे मैं क्या बताऊ आप मेरे से जायदा जानते है, और अगर नहीं तो मैं कोसिस करूँगा की अपने आने वाले किसी ब्लॉग मैं एस के बारे मैं लिखूंगा.
तो बात इंदर देव के जिस ने मुंबई मैं कहर डाल रखा है चारो तरफ पानी ही पानी और कही पर सुखा डेल्ही मैं अभी तो हालत टिक है पर कब तक तो एस पर मुझे एक शेर ध्यान आ रहा है वो इसे है
"ये बारिश तेरी हालत पे रोना आया, ये बारिश तेरी हालत पे रोना आया"
कभी तेरे न होने पर रोये -कभी तेरे न होने पर रोये
कभी तेरे होने पर रोना आया "
सच बात है कभी न हुई तो सुखा और हो गयी तो बाड
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