सोमवार, 30 जुलाई 2012

"Anna" 2012 Indian anti-corruption movement

   


                 दोस्तों आज अन्ना जी के अनशन मैं भाग लेने गया  था सच  बोलू तो, एसा लगा की मैं (हम) क्या कर रहे है, अभी तक टीवी पर समाचार पत्रों मैं हि इसे पद रहे है पर अब टीवी और समाचार मैं देख कर नहीं ,  मैं अपील करता हु उन लोगो से जो अभी तक अन्ना के एस आन्दोलन मैं शामिल नहीं हुए है, आप जा कर देखो तब आप को पता लगेलोगो ने क्या बलिदान किया/ कर रहे  है, कितने  सारे  लोग वह पर आप और मेरे लिए अनशन पर  बेठे है, उन मैं से कई लोगो की उम्र इतनी है की उनका भूखा  रहना खतरे से खाली नहीं है पर वो लोग भी एस देश के लिए अपना बलिदान देने के लिए तेयार है, इस 121 करोड़ की जनता मैं  हमें उन से कुछ  शिखना  होगा नहीं तो हम आने वाले टाइम को जवाब नहीं दे पायंगे, न हमारे पास वो मोका होगा जिस के करना हम किसी को दोसी बता सके क्योकि जब आपसे ये सवाल पूछा जायेगा की आप ने एस देश और अन्ना के आन्दोलन मैं कितना सहयोग दिया तब तुम्हारे पास कोई जवाब नहीं होगा तो दोस्तों समय आ गया है, ताकि हम एस देश के लिए अपने गणराज्य के लिए क़ुरबानी देने के लिए तेयार हो जाये अगर आप एस क़ुरबानी मैं देश के काम भी आये तो ये देश और आने वाली पीध्दिया आप के एस बलिदान के लिए  आप को  सदा याद रखेंगी, अब टाइम आ गया है के लोगो को सड़क पर आना पड़ेगा, एस के लिए आप को अपने घरो से निकलना पड़ेगा और अपने साथ अपने साथियों  को भी लाना पड़ेगा क्योकि सरकार के कानो मैं अभी तक जू भी नहीं रेंगी है, उस ने अपने एक कान मैं तेल और एक कान मैं पानी डाल लिया है! अभी तक सरकार की तरफ से कोई भी बातचीत की पहल नहीं की गयी है पता नहीं सरकार को किस बात का इंतजार है.

   दोस्तों एस बात को समझना होगा की देश आप का साथ मांग रहा है, अगर आप अभी साथ नहीं आये तो कब आओगे देश के लिए एक जुट होना ही पड़ेगा,  बार बार अन्ना जनम नहीं लेते, आपके पास मोका है अन्ना के साथ मिल कर कुछ एसा कर दिखने की की आप का नाम भी अमर हो जाये और अगर आप का नाम किसी को पता नहीं भी चला तो कम से कम आप अपने आप के जमीर को तो जवाब दे सकते है, जरा वह पर जा कर देखो एक ७० साल का आदमी आप के लिए अपना आज कुर्बान कर रहा है और आप कहा है फिल्म देखने मैं वयस्त है, घरो मैं है , ऑफिस मैं है, कब आखिर कब आप इस मुहीम का साथ देंगे, दोस्तों हमें अन्ना और अन्ना की टीम का साथ देना होगा वो आप से कुछ नहीं मांग रहे न पैसा न और कुछ बस मांग रहे है तो आप का साथ ताकि एस सोती हुई सरकार की नीद खुल जाये.

 आखिर क्या बात है की पिछले ४४ सालो  से ये बिल आज तक अटका पड़ा है, आखिर  इस  बिल मैं एसा क्या है की कोई भी सरकार इसे पास करवाने की हिमत नहीं जूठा प् रही है, कांग्रेस के सामने जब से यह बिल आया है, तब से ले कर आज तक एस बिल पर लीपा  पोती हो रही है, सरकार को लोगो को ये दिखाना होगा की ये सरकार लोगो के हित के लिए किसी भी प्रकार का कानून लेन से नहीं डरेगी, और डरे भी क्यों डरे तो वो लोग जो गलत काम  करते है, आखिर इसी कोन सी बात है के उन १५ लोगो के खिलाफ ये लोग कोई कारवाही नहीं कर रहे है एसा क्या है उन मैं क्या वो एस देश के कानून से उप्पर है क्या कारन है, अब ये सिर्फ अन्ना और अन्ना की टीम नहीं पुच रही है अब पूरा देश ये पुच रहा है की आखिर कब तक एसा ही चलता रहेगा.  

दोस्तों अपना सहयोग एस आन्दोलन मैं जरूर दे और एस आन्दोलन को सफल बनाने मैं अन्ना जी और उनकी टीम का साथ दे क्योकि एस मैं जीत अन्ना जी के साथ साथ आपकी भी है 

वन्दे मातरम  जय हिंद!!!

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

MEDIA IN INDIA


भारत देश और मीडिया 


आज के इस सुचना क्रांति के युग मैं जहा की खबरे प्रकाश से भी तेज गति से चलती है, और विश्व इस सुचना क्रांति से आगे बाद रहा है, इस मैं कोई भी दो राय नहीं है की अगर ये सुचना क्रान्ति  का दोर  नहीं आता तो सायद हु इतनी तेजी से विकास नहीं कर पते जितनी तेजी से आज कर पा रहे है इस का श्र्ये सवार्गीये श्री राजीव गांधी जो को जाता है जिन्होंने भारत के लिए इस के दरवाजे खोले ये उन की दूर दर्शिता का ही नतीजा है की आज हम सूचना क्रांति के अग्र्दिम राष्टो मैं गीने जाते है, इस सूचना क्रांति के साथ हमारे देश ने बड़ी तरकी भी की है, ये बात आप से अच्छा कोई नहीं समझ सकता आज विश्व भारत की सुचना क्रांति का लोहा मानता  है, अब बात सूचना क्रांति मैं मीडिया की......  जहा लोगो को इस ने देश विदेश की खबरों से अवगत कराया वही उस ने लोगो मैं जनचेतना का काम  भी किया,  टीवी के सुरवाती दोर मैं जब टीवी को व्यपार के रूप मैं नहीं लिया गया था तब तक सब कुछ ठीक था पर जेसे जेसे इस ने व्यपार का रूप धारण किया इस मैं विसंगतिय आ गयी, इस के बाद यह मीडिया वो काम  करने लगा जिस मैं उसे फायदा नज़र आने लगा और एसा होना भी चाहिये हर किसी को ये अधिकार है की वो एसा कम करे जिस से उस की जीविका चलती रहे, पर एसा भी नहीं होना चाहिये की इस फायदे की दोड मैं हम सब कुछ दाव पर रख दे एसा करने  से हमारा देश खोखला हो जाये... हमारा सामजिक, आर्थिक, नेतिक  दांचा बदल जाये... जो सकारातमक कम और नमरात्मक जायदा हो रहा है... 

    

मैं हमेशा  से एक बात मानता हु की आज के समाज को बनाने मैं सब से बड़ा हाथ मीडिया का है क्योकि हम ऑफिस और परिवार  के अलावा अगर सब से जायदा टाइम अगर किसी को देते है वो है मीडिया मैं, जहा पर  आपको  क्या देखने को मिलता  है, आप देखेंगे तो इस इस तरह की नाटक आते है जिस का कोई सर पैर  नहीं है पर लोग देख रहे है, स्त्रियों को देवी से हटा कर सिर्फ और सिर्फ भोग   की वस्तु बना दिया गया हैिखाया जाता है  स्त्री पहले के मुकाबले ससक्त हो गयी है और अच्छा है , वही पुरष  को नीचा दिखाने की वाकायद चल रही है पर इस बात को कोई समझने को तेयार नहीं हो रहा है, की ये क्या हो रहा है लोग उसे एन्जॉय कर रहे है   अगर एसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं है जब जिस देश मैं अराजकता का माहोल होगा, मैं ये भी नहीं कहता की सब टीवी चैनल एक एसा काम कर रहे है लिकिन अगर मैं 100  टीवी चैनल की बात करू तो उस मैं 98 टीवी चैनल एसा कर रहे है और दर्शको के पास इस के सिवा और कुछ नहीं है दखने को अगर वो कुछ देखना भी चाहज़ ते है वो उन के पास वो ही एक जेसे रियल्टी शो, सास बहु की कहानी वो टीवी पैर अभद्र  डांस हिंसा, घरेलु हिंसा और हमरी नयी पीड़ी इस को देख कर वेसा ही करने की कोसिस कर रही है जिस से हमरी सामजिक और संस्कर्तिक पहचान दुमिल होती जा रही है, माँ-बाप के पास अपने बच्चो के लिए टाइम नहीं है क्योकि इस बाज़ार वाद मैं जब तक दोनों नहीं कमाएंगे तब तक सुख सुविधा की सारी वस्तुए नहीं खरीद पायेंगे, जिस की कारण हम बच्चो को सही शिक्षा नहीं दे पा रहे है उन मैं कही न कही सामजिक, नेतिक शिक्षा की कमी है! बच्चो मैं हिंसा का परसार हो रहा है, छोटे छोटे बच्चो के दिमाग मैं हिंसा आ रही है, अभी मैं कुछ दिन पहले की किसी पेपर मैं पद रहा था की 5 क्लास के बच्चे ने छोटी से बात पर अपने दोस्त को जान से मार  डाला, अब ये हिंसा कहा से आ रही है कोई बताये ये बात, ये वो बाते है हो बच्चे अपने बड़ो और टीवी के मादय्म से देखते है!


और सब से बुरी हालत अगर हुई है तो वो है न्यूज़ चंनेलो की, अगर आप देखंगे तो उन के पास कुछ है ही नहीं, किसी भी खबर को ब्रेअकिंग न्यूज़ बना देते है, उदाहरण जेसे की अमिताब बच्चन आज मंदिर गए, राकेश रोशन का कुत्ता खो गया, सलमान ने नयी टी-शर्ट पहनी, और भी एस तरह के कई उद्धरण है पर मैं आपको बताऊ आप मेरे से बेहतर समझते है एस तरह का न्यूज़ चेंनलो से आम लोगो को खबर पहुच रही है एस से क्या पता चलता है की या तो ब्रेअकिंग न्यूज़ के मायने बदल गए है या साडी खबरे ब्रेअकिंग न्यूज़ हो गयी है, अब मैं एस मैं मेरी जायदा तिपंडी करना टिक नहीं है नहीं तो वो मेरे खिलाफ भी बोलने लगेंगे, मैं कुछ टाइम से देख रहा हु की ये संचार चैनल ही है जो किसी को भी पल मैं हीरो और पल मैं जीरो बनाने का मादा रखते है, वो बात अलग है की आप को वो लोग क्या बनाना कहते है, न्यूज़ चंनेलो की विस्वसनीयता पर अब सवाल उठने लगे है और उठे भी क्यों न जिस तरह से न्यूज़ चैनल पैसा ले कर कुछ भी दिखाने को तेयार है कोई भी इन को शक की नजरो से देखेगा, तो टाइम है बदलाव का अगर ये बदलाव जल्दी से नहीं आया तो हमरे देश से न्यूज़ चेंनलो से आम जनता का विस्वास उठ जायेगा...


इस लिए मैं एक बात कहना चाहता हु की अच्छा है की हमरा देश तरकी कर रहा है ये बात भी मानता हु की टाइम के साथ बदलाव जरूरी है पर ये बदलाव सही दिश मैं होने चाहिये ताकि हम अपनी  आने वाली पिडीया के लिए कुछ सहेज कर रख सके, उन्हें बता सके की हमारी संस्क्रति का लोहा पूरा संसार मानता है... और इस मैं एक बड़ा रोल अदा करेगा और वो है हमारा  मीडिया, मीडिया को इस बात को समझना होगा की फायदा अपनी जगह है और समाज अपनी जगह और उस समाज के लिए कुछ करना पड़ेगा जिस का की वो खुद भी हिस्सा है  ताकि हमारा आने वाला कल सुरक्षित हो सके....


रविवार, 15 जुलाई 2012

"Sawan"


         

           दोस्तों महिना सावन का, मस्त फुहारों का चारो तरफ हरियाली का मंजर, और आप जानते है की हमारे मूड मैं मोसम का कितना बड़ा रोल होता है, ये तो आप  से बेहतर कोन बता सकता  है! तो बात सावन की "सावन" का महिना और बात झूलो की, जो अब सिर्फ सोच मैं रह गए है, वो आम की डाली वो नीम  की डालियों मैं झूलो का होना वो सहेलियों के साथ मुस्कारना मस्ती और मस्ती, कच्ची अमिया का खाना, चिडयो का काह्चाहना एसा लगता है जेसे बीते हुए टाइम की बात हो गयी क्या सच मैं एसा है आपको एसा लगता है क्या???  
 वेसे मेरे को इस  "सावन" से सुभा मुद्गल का वो गीत याद आता है:
अब के सावन इसे बरसे बह जाये रंग मेरी चुनर से... कितनी हसीं पंक्तिया सच  मैं जब सावन मैं बारिश हो रही हो और ये वाला गाना चल रहा हो तो आप को सच  मैं पता चलेगा आप ने क्या मिस कर दिया टाइम के साथ, सावन मैं भीगने  का क्या मजा है, जब आप मुस्त बारिश के ठंडी ठंडी बूंदों मैं नहा रहे हो और मस्त बारिश हमें भीगा रही हो...  जब हम स्कूल मैं पड़ते थे तो माँ हमें भीगने  से मना करती थी, बोलती थी की तबियत ख़राब हो जाएगी और हम बारिश को सिर्फ खिडकियों से देखा करते थे, और खिड़की मैं बेठ कर आने जाने वालो और भीगने वालो के बारे मैं सोच कर बड़ा अच्छा महसूस कर रहे होंगे पर  हम भी कम उस्तात नहीं थे जब भी सावन का महीना सुरु होता था हम अपनी स्कूल बैग मैं एक प्लास्टिक की पन्नी रख लेते थे और जब भी स्कूल से आते हुए बारिश होती थी तो मोका बिलकुल भी नहीं गवाते थे, मस्त  बारिश का मजा घर आ आकर "माँ आज तो मैं भीग गया एक दम से बारिश सुरु हो गयी",  और मैं ये मांगता हु की सिर्फ मैं एसा नहीं करता होऊंगा आप मैं से भी कुछ लोग इसे होगे जो एसा करते होंगे और अपनी लाइफ मैं बारिश के पानी से रंग भरते होंगे, जेसे गीत मैं कहा की "बह जाये रंग मेरी चुनर से" वो रंग चुनर से निकल कर आप को भी रंग देती है, फिर देखो सब कुछ कितना हसीं लगता है!
   अब तो बारिश मैं भीगे हुए भी जमाना हो गया है, ऑफिस से घर और घर से ऑफिस, बस इतनी सी दुनिया,  बारिश नहीं होती तो "क्या यार बरिश नहीं हो रही है इतनी गर्मी हो रही है" बारिश हो जाये तो "यार बारिश ने भी बड़ा दिमाग ख़राब कर रखा है साला ऑफिस आते जाते हुए सुरु हो जाती है कही आ जा भी नहीं सकते" अब तो हमें एसा लगता की सब कुछ हमरे हिसाब से हो पर सायद अभी ये हमरे बस मैं नहीं है, आने वाले टाइम मैं एसा हो जाये तो कोई बड़ी बात नहीं है, 
इंदर देव भी अब थोड़े से मुड़ी हो गए है पहले तो बारिश नहीं करते और जब करते है तो बाड आ जाती है, और ये तो नियति हो गयी है, एस के लिए हर कोई एक दुसरे को गलत बता रहा है कोई कहता  है की इंदर देव मस्ती के मुड मैं है कोई कहता है की गोलोबल वार्मिंग हो गयी है एस लिए एसा होता है कोई कहता है की MCD और NDMC के इंतजाम टिक नहीं है, पर आप और मैं भी जानते है इस के लिए कोई नहीं हम सब जीमेवर है वो बात अलग है की हमरी तो आदत हो गयी है अगर कुछ अच्छा  तो हम ने किया अगर कुछ बुरा तो आप ने किया, अब किसी को तो गलत बताना है और अपने को सही और एसा तो करना ही पड़ेगा क्योकि आप कभी गलत हो ही नहीं सकते, हा हाहा हा ....अब किसी ने ये तो बताया नहीं की आप ने जो चिप्स खाने के बाद रेपर को रोड पैर फेक दिया था उस ने नाली बोलक कर दी,  घर का कूड़ा सीधे खिड़की के रास्ते दुसरो के घर के आगे फेक दिया और उन भी साहब ने उसे अपने घर के सामने से हटा कर रोड के तरफ कर दिया, बेचेआरे बदनाम मकद और NDMC वाले अब करे भी तो करे क्या कई बार लोगो को समझाने की कोसिस की लोग को जागरूक करने की कोसिस की, और एक बात एक दम से मेरे ध्यान मैं आई हमारी डेल्ही सरकार ने कुछ दिन पहले एक कानून पास किया की कोई भी दुकान से आप को पोलोथिन नहीं मिलेगी, मस्त वाला मजाक था किसने एस कानून को फोल्लो किया आप से जायदा कोई नहीं बता सकता, थोड़ी से बात ग्लोबल वार्मिंग की, दोस्तों मुझे पक्का यकीन है आप को एस के बारे मैं क्या बताऊ आप मेरे से जायदा जानते है, और अगर नहीं तो मैं कोसिस करूँगा की अपने आने वाले किसी ब्लॉग मैं एस के बारे मैं लिखूंगा.
तो बात इंदर देव के जिस ने मुंबई मैं कहर डाल रखा है चारो तरफ पानी ही पानी और कही पर सुखा डेल्ही मैं अभी तो हालत टिक है पर कब तक तो एस पर मुझे एक शेर ध्यान आ रहा है वो इसे है 
"ये बारिश तेरी हालत पे रोना आया, ये बारिश तेरी हालत पे रोना आया"
कभी तेरे न होने पर रोये -कभी तेरे न होने पर रोये 
कभी तेरे होने पर रोना आया "
सच  बात है कभी न हुई तो सुखा और हो गयी तो बाड 









शुक्रवार, 22 जून 2012

Childhood,


         


                       बीचके दिनों मैं बड़ा ही वयस्त था तो कोई भी बोलग नहीं लिख सका पर, पर आज गर्मी के बीच अपने नये घर पर छत पर बैठ कर कुछ लिखने का मोका मिला तो सोच की कुछ एसा लिखू की आप भी अपने पुराने दिनों को ये बात याद करे और ये बात आप  को अपनी सी बात लगे!

बात तब की जब मैं 4 साल की उम्र मैं गाँव से डेल्ही आया था और आज मैं 29 साल का हो चूका हु करीबन 25 साल जीवन के मैं मैं डेल्ही मैं और नॉएडा मैं गुजार चूका हू पर लगता है की जेसे कल की ही बात है, सायद हा भी और सायद नहीं भी, जब सोचता हू बीते हुए कल के बारे मैं तो बड़ा ही अजीब सा और हेरान करने वाला लगता है, क्या सुच मैं 29 साल का हो गया हू टाइम इतनी तेज़ी से गुजार रहा है और मैं इतना टाइम अपने पीछे छोड़ आया हू  और मैं डेल्ही मैं 25 साल गुजार चूका हू तो पता चलता है हा यार ये  तो सच है!
  
       पर मैं जब सोचता हू की मैं एन 25 सालो मैं क्या खोया और क्या पाया तो बहुँत सारी बाते दिमाग मैं आती  है और उस मैं जो सब से पहली बात आती है और वो है है मेरा घर जहा आप ने अपना बचपन,  कीमती टाइम दिया है तो दोस्तों एन 25 सालो मैं 5 घर अभी तक बदल  कर चूका हू बड़ा ही अच्छा लगता है जब नये और बड़े घर मैं जाते है पर कुछ ऐसा है जो आपको कुरेदता भी है मैं ऐसा महसुसू करता हू और सोचता हू की आप भी ऐसा ही महसूस करते होंगे,
और वो है आपकी पुराने घर की यादे और आप सब से जायदा जो याद आते है वो है आपके बचपन के पडोसी और आपके बचपन के दोस्त पुरनी दुकाने बचपन का  स्कूल, एक बार की बात है जब मैं अपने पुराने स्कूल की तरफ से निकला तो सोच क्यों न अपने पुराने स्कूल मैं होता हुआ जाऊ देखू  और अपनी पुराणी यादो को की केसा हो गया है स्कूल तो देखा तो बड़ा ही अजीब सा लगा सब कुछ बदल गया था, समय के साथ सब बदल जाता है पैर कभी कभी हम अपने लिए इतने सवार्थी हो जाते है की बदलाव को एक्सेप्ट करना ही नहीं चाहते, और मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ मैं उस स्कूल मैं सारी जगह पर घुमा और याद करता रहा की यहाँ पर ऐसा था और यहाँ पर ऐसा था पर अब सब कुछ बदल गया था, न वह पर क्लास थी न वो तेअचेर न वो पार्क न वो गाते और न वो चूरन वाले अंकल, वो दुकाने जहा से हम २५ पेसे मैं ५ टाफी लेते थे अब वो भी बंद हो चकी थी या अब वो बदल गयी थी, मैं दिल भर आया और मैं सिर्फ ये सोचता रहा की, क्या यही ही नियति है!u
शाम को छुपान चुअपी, चैन, उच्च नीच का पपदा, टीवी , बॉक्स , पिठू, पकड़म पकड़ाई , चोर पोलिसे , तोता उड़ा, साप सीडी , बिज़नस, कलर , वाला गेम खलते थे, और थक कर चूर हो कर सो जाते थे.

तब पैसे का paise  हुआ करता था! एक रुपये मैं पीली वाली दो ice -cream आती थी और दूद वाली 1 रुपये मैं, तब कॉमिक्स हम किराये पर ले कर पड़ते थे और स्कूल मैं जा कर उस कोमिकास के बारे मैं बात करते थे और सन्डे के दिन मैं पित्चुरे आती थी उसे सारा परिवार साथ मैं देकता था, सन्डे के दिन महाभारत आता था सभी पुराने लोग उसे सुच समझ लेते थे, सुच मैं क्या दिन थे थोड़े से कोम्मेरिकल अदद आते थे और फिर पूरी पित्चुरे.

एस भागती दोड़ती जिन्दगी मैं कुछ पल अपने लिए निकालो तो आपको पता चलेगा की आप ने क्या खोया और क्या पाया.... कुछ पहलु है जो आप भी महसूस करेंगे और आप भी मेरी तरह से स्वार्थी हो जाना चाहेंगे... की कास ये टाइम दुबारा से लोट कर आ जाये!!!


शुक्रवार, 25 मई 2012

Petrol Price in India


 



पेट्रोल की आसमान छूती कीमतों ने एक बार फिर से आम आदमी का जीना दुर्भर कर दिया है.वेसे ही आम आदमी इतना परेशान है और अब ये पेट्रोल की कीमतों का भार कब तक इसे ही आम आदमी सहता रहेगा!

जो आज तक मेरी समझ मैं बात नहीं आई वो की आखिर हम किस और जा रहे है, क्या इस  सरकार ने जनहित की सभी सेवाओ को ख़तम करने का सोच लिया है (सब्सिडी)  अब तो कुछ एसा लगने लगा है  की सरकार का नारा ही  अब बदल गया है पहले नारा था " गरीबी हटाओ देश बचाओ" अब तो एसा लगता है "गरीबो को हटाओ देश बचाओ" और ये जो कुछ भी हो रहा है एसा लगता है उसी रंडनीति के अंतर्गत हो रहा है.


बात शुरु हुई थी हमारी अर्थवयवस्था के सुधार के दोर  से और आज के तात्कालिक प्रधान मंत्री श्री मनमोहन  सिंह जी जिन्हें आप "मन-मोहन सिंह के नाम से भी जानते है, जब ये स्वर्गीय श्री राजीव गाँधी की सरकार थी  इसी समय सरदार मनमोहन सिंह  लोगो के सामने ये विचार  लाये की हमारा देश विकास के  इस दोर मैं पिछड़ रहा है और हमें उस मैं सुधार लाना पड़ेगा इस के लिए और 1991  जब श्री मनोहन सिंह जी वित मंत्री थे तो उन्होंने इस देश के अर्थ्वय्स्था को सारे  संसार के लिए खोल दिया ताकि सभी को बराबरी को मोका मिल सके, सोच अची थी पर होता क्या है जब भी हम सोचते है की कुछ भी करने का तो उस के दो पहलु होते है सिक्के की  तरह से कुछ अछे और कुछ बुरे इस मैं कोई दो राय नहीं की श्री मनोहन सिंह जी एक अछे अर्थ्वय्स्था के जानकर है पर कुछ कडवे सच है जो हम आप और हम दो चार हो रहे है.


अब बात की आखिर कार पेट्रोल की कीमतों मैं बेह्तासा बढोतरी क्यों हो रही है.


विश्व मैं कच्चे तेल की कीमतों मैं उच्छाल :-

अर्थ्वय्स्था जिस बात से शुरु और ख़तम होती है वो है "मांग और पूर्ति" सुने और देखने मैं  एक छोटा सा नियम लिकिन ये ही है जो पूरी अर्थ्वय्स्था को चलता है अब बात पेट्रोल की की जेसे जेसे देश अपनी अपनी उन्नती की राह  पर चल पड़े है वेसे वेसे उर्जा की मांग बदती जा रही है, और इस मांग मैं सब से बड़ा हिस्सा पेट्रोल और उस से बनी चीजो की है जिस  की ही वजह से तेल की कीमते बढती जा रही है.. और जो थोड़े से तेल निर्यातक देश है वो इस बात का फायदा उठा रहे है उन्होंने एक सयुक्त  संगठन बना लिया है जिसे है ओपेक के नाम से भी जानते है,  जो की तेल की कीमतों पर फेसला करता है.


भारत के सामने और भी समस्याए है  हमारे देश का रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार मैं  दिन परती दिन कमजोर  होता जा रहा है जिस की कारन हमें डालर को खरीदने के लिए जायदा पैसा चुकाना पड़ रहा है,  इस के आलावा जेसे की सभी तेल उत्पादक देश भारत से काफी दुरी पर  है जिस कारन उसे इस तेल पर ढुलाई पर बड़ा पैसा खच करना पड़ता है, जिस के कारन भी हमें पेट्रोल के दम जादा चुकाने पद रहे है तीसरा और सब से बड़ा कारन हम अपने देश मैं उपभोग होने वाले तेल मैं सिर्फ 15-20 % का ही उत्पादन कर पाते है जिस से हमारी निर्भरता तेल उत्पादक देशो पर जायदा हो गयी है और हम जायदा दामो पर तेल को खरीदने के लिए मजबूर है.


निपटने के उपाय:-

आप सभी जानते है आज भी भारत की 70 % से जायदा लोग गरीबी रेखा से नीच रह रहे है अब बात वो अलग है की अगर सरकार 36 रुपये रोजाना कामने वाले को गरीब नहीं समझती है तो वेसे अगर आप जिस हिसाब से आज की महंगाई का दोर है चाहे वो गरीब हो या आमीर सब परेशान है, अब बात ये है की इस तेल के खेल या इस कीमत को हमरे देश मैं केसे कण्ट्रोल किया जाये, उस पैर केसे नियंत्रण रखा जाये तो सरकार को चाहिये की वो बाजार मैं पेट्रोल की दो प्रकार  की कीमते  रखे सरकार कुछ एसा कर सकती है जिस भी परिवार के पास 1 से अधिक गाडी है उसे पेट्रोल के लिए जयादा कीमत चुकानी पड़े और सब लोगो को मास्टर कार्ड टाइप पेट्रोल कार्ड दिए जाये जिस पर कुछ रीयत दी जाये अगर वो एक सीमा तक पेट्रोल का उपभोग करते हो तो अगर वो उस सीमा से जायदा पेट्रोल का उपभोग करे तो उस से जायदा कीमत वसूली जाये, पेट्रोल की कीमत लुक्सुँरी गाडियों के लीये अलग राखी जाये और ordanry  गाडियों के लिए अलग देश मैं जायदा से जायदा पेट्रोल के बोलग खोजे जाये, उर्जा के नए सोअरतो के विकास और खोज पर जायदा ध्यान दिया जाये,  पब्लिक ट्रांसपोर्ट को और मजबूत बनाया जाये ताकि लोग अपनी गाड़ी से जायदा पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करे और भी बहुँत सरे उपाय हो सकते है ये तो बस एक नमूना है, इस से देश और सभी लोगो का पैसा बचेगा और देश और उनती की और बढेगा.


शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

Labour in India



कभी कभी आप अनुभव करते है की शायद आप जो देख रहे है वो एक दम अलग सा अहसास है, जब आप सिर्फ किसी बात को सोच सकते है महसूस कर सकते है पर शायद  आप उस मैं/ उस के लिए  कुछ कर नहीं सकते, या कर नहीं पाए मैं तो एसा मानता हु की  एसा कई बार होता है पर आप के साथ एसा होता है या नहीं ये आप से बेहतर कोई नहीं बता सकता...

   बात कुछ दिन पहले की  मैं अपने ऑफिस के काम से लेबर ऑफिसर से मिलने गया हुआ था तभी मैंने एक व्यक्ति को देखा  जिस की उम्र करीबन 45 -50 के बीच होगी और जो जोर जोर से रो रहा था, उस के एस तरह से रोने से मेरी थोड़ी सी  जानने की अभिलाषा हुई की आखिर  ये इस उम्र का आदमी एस तरह से जोर जोर से क्यों रो रहा है, थोडा सा नजदीक जाने से पता चल की, उस ने अपनी एक कंप्लेंट लेबर ऑफिसर मैं दी हुई है और लेबर ऑफिस वाले उसे कई दिनों से चक्कर लगा रहे है पैर कुछ भी फेसला नहीं हो रहा है वो delhi  मैं अकेला रहता है और उस ने अब से ३ महीने से यहाँ पर कोम्प्लिनेट करा राखी है पैर कुछ हो नहीं रहा है वो रो रहा है की उस के पास जॉब नहीं है खाने को पैसा नहीं है, मैंने उसे बड़े ध्यान से देखा पेरो मैं टूटे हुए जूते पुरानी पेन्ट, एक उधडा हुआ सा स्वेटर, बड़ी हुई दाड़ी, और सफ़ेद बाल, बड़ी ही कायल काया, मैंने जानने की कोशिस की आखिर ये तीन बुध आदमी रो क्यों रहा है तो पता चला की एस आदमी को एक लाला (दुकानदार)  के साथ कम करते हुए 32  साल हो गए और उस आदमीं की तनखा आज भी सिर्फ और सिर्फ 3500 /- महिना है, और वो  एस बात को रो-रो कर लेबर ऑफिसर को बता रहा था!




   सर मैं इन  के साथ तब से काम कर रहा हु जब मैं 16  साल का था और अब मेरे को इन के साथ कम करते हुए 32  साल हो गए है और आज भी ये मुझे 3500 /- महिना तनखा देते है, और मैं सुबह 8  बजे से रात को दुकान बंद होने तक इन के लिए कम करता हु ये मेरे को हफ्ते मैं कोई छुटी भी नहीं देते है! जिस दिन दुकान बंद होती है मैं एन के घर पर जाता हु घर के काम करने के लिए.


सिर्फ साल मैं 20 -25  छुट्टी देता है उसे अपने घर (गाँव)  जाने के लिए, पर  एसा नहीं है की वो उस आदमी को उन  दिनों  की तनखा देता है. जिस दिन कम करेगा सिर्फ और सिर्फ उस दिन के ही पैसे मिलंगे.


 तब सोचा जब हमारे देश की राजधानी मैं ये हाल है तो और राज्यों का क्या हाल होगा, आज भी हम न्यूज़ पपेरो मैं ये पड़ते है की देल्ही के कई छेत्रो मैं छापे मरे गए तो पता चला की वह पर बाल मजदूरी चल रही थी या उनको बन्दुआ मजदूरों की तरह से काम कराया जा रहा था. या जो लोग कम कर रहे है उनका शोषण हो रहा है उनके काम के घंटो को बड़ा दिया जाता है उनको उनका सही वेतन नहीं मिलता, और भी बहुँत सारी चीजे है जो आप और मैं देखते है, और अब एसा नहीं की ये रिवाज सिर्फ और सिर्फ इंडियन कंपनी मैं हो, अब तो देखा देखी MNC  कंपनी ने भी ये सुरु कर दिया है और करे भी क्यों न जब सब कुछ इतना आसन है.


असल मैं, दिल्कते दो है
  1. पहली दिकत है लोगो का अन्पड है, जागरूक नहीं नहीं 
  2. दूसरा गरीबी 
अब एसे मैं क्या किया जाये, बहुँत सारी दिकते है, वेसे तो सरकार ने सब जगह पर लेबर ऑफिसर बनाये है अगर आप का शोषण  हो रहा है तो आप जाये और अपनी रिपोर्ट करवाए, रिपोर्ट लिखी , और करवाई भी जाती है पर मजदूर को सायद ही कुछ मिले क्योकि इसका असली मजा भी लेबर ऑफिसर और उनिओने  वले ही ले लेते है दोनों आपस मैं बात कर लेते है और मामले को एसे ही रफादफा करवाने मैं मैं कामयाब हो जाते है.रह जाता है बेचारा मजदूर, मजदूर बोले तो मजबूर... जिन्दगी एसे ही कट जाएगी समां इसे ही बुझ जाएगी, क्या लाया था साथ मैं  जो ले जायेगा, जो मिले उसी मैं खुस रह.

अगर आपकी वयवस्था ही ऐसी है तो आप केसे न्याय की बात कर सकते है एसे एक नहीं आपको कई लोग मिलेंगे पर आप सायद उन के लिए कुछ भी न कर सके! बात वयवस्था की है हम कहते है कहना आसन है पैर कर के दिखना बड़ा ही मुस्किल,  की सब कम रूल्स की हिसाब से हो  प्राइवेट सेक्टर मैं,  ताकि वह पर मजदूरों का शोषण  न हो.

ये एक question है आप और मेरे लिए अगर आप के कुछ सुझाव  या आप मेरी बात से इत्फाख नहीं रहेते हो तो अपने सुझाव मेरे को जरूर दे क्योकि जब आप मेरे को अपने सुझाव देते है,  तो मेरा ज्ञान भी बढता है और वेसे भी ज्ञान जहा से भी मिले ले लेना चाहिये!!!


सोमवार, 9 अप्रैल 2012

"Hamara Uttrakhand"

                                                                                                          दिनाक:- 09/09/2012

हमारा उत्तराखंड,

दोस्तों बड़े दिनों के बाद लिखने का मोका मिला तो बहुँत सारे  टोपिक दिमाग मैं आ रहे थे पैर समझ नहीं पा रहा था की किस पर  लिखना  सुरु करू क्योकि मेरी हरदम ये कोशिस रहती है की समसामयिक घटनाओ पर अपना ब्लॉग लिखू !
इस से पहले मैं अपना बलोग लिखना शुरु करू मैं सबसे पहले अपने पढने वालो का धन्यवाद  करना चाहता हु जिन्होंने मेरे बोलग को इतना पयार दिया, सच बोलू तो ये मेरे लिए मेरी उर्जा का साधन है, आप कुछ भी लिखते रहे अगर आप के पास आप  जेसे पाठक नहीं हो तब तक लिखने  का कोई फायदा नहीं है! इस लिए एक बार फिर से आप सभी को  तहे दिल से धन्यवाद!!!!

तो आज का ब्लॉग  मैं अपने राज्य जिस का मैं मूल निवासी हु उस के बार मैं बताना चाहता हु, हिमालय की उची उची पर्वत मालाओ से घिरा "उत्तराखंड " देव भूमि जिस के कण कण मैं भगवान् का वास है, बहुँत ही न्रिमल पावन भूमि, हिन्दुओ के कई विश्व प्रसिद मंदिर, प्रसिद नदिया इस  राज्य मैं है! इस राज्य को सुन्दरता भगवान ने उपहार सरूप दी है, यहाँ के लोगो की सादगी, इमानदारी, और मेहनत के लिए पुरे देश मैं विख्यात है.

अब मैं बात करूँगा उन पहलुओ की जिस के बारे मैं हम बात तो करते है पर  सायद इतना ध्यान नहीं दे पते जितना देना चाहिये और एसा होना कोई बड़ी बात नहीं है क्योकि सब लोग इस भागते दोर मैं बड़े ही व्यस्त है, पर अपनी व्यस्ता के बीच थोडा सा समय अपने मूल राज्य के लिए चाहता हु! इस बोलग के माद्यम से मैं उन लोगो तक भी अपने राज्य के बात मैं बताना छठा हु जिन्होंने सिर्फ आज तक इस राज्य के बारे मैं सुना है पैर सायद कभी इतना ध्यान नहीं दिया,

वेसे मैं इस राज्य के बारे मैं अपने आने वाले बोलग मैं भी लिखता रहूँगा पर अभी मैं इस राज्य के बारे मैं कुछ मुख्य  बाते बता रहा हु. उम्मीद करता हु की आप जरूर इस को पसंद करेंगे.




उत्तराखंड राज्य 
"उत्तराखंड राज्य का उदय 9 नवम्बर 2000, को भारत की 27 राज्य के रूप मैं हुआ, यह राज्य भारत का 18 सबसे बड़ा राज्य है,  इस राज्य के गठन मैं इस परदेश के लोगो ने बड़ी कुर्बानिय दी और वो कुर्बानिय पता नहीं क्यों, कभी मेरे को लगता ही की हम उन लोगो की कुर्बानियों को बेकार कर रहे है, आज राज्य बनाने के 12 साल बाद भी हम वही पर  है जहा से हमने चलना स्टार्ट किया था, सरकारे बनती रही, विकास के नाम पर कुछ काम भी हुआ, हुआ पर  सायद जितना होना चाहिये उतना नहीं हुआ, उस का एक मुख्य कारन है /जो की सरकार बताती है की हम पहाड़ी राज्य है यहाँ पर  विकास पर  जायदा पैसा खर्च होता है, पर क्या इस तरह से अगर अपनी  कोम्जोरियो को बताते रहेंगे तो कभी हमरा राज्य विकास कर पायेगा सायद नहीं.


उत्तराखंड अर्थव्यवस्था:-
उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन उद्योग पर निर्भर करता है. उत्तराखंड हिमालय की तलहटी पर स्थित राज्य है, जो सब से दुनिया भर में इस तरह राज्य के लिए पैसे लाने के पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है,  कई पहाड़ी स्टेशनों को भी हम थोडा सा विकास कर ले तो हम इनको   पर्यटन उद्योग मैं  शामिल कर सकते है. पहाड़ी स्टेशनों के अलावा, वन्य जीवन को भी पर्यटन के लिए एक प्रमुख आकर्षण रहा है पर्यटकों के लिए कॉर्बेट नेशनल पार्क और प्रसिद्ध टाइगर रिजर्व भी आकर्षण का केंद्र है!

अगले सबसे महत्वपूर्ण उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था के लिए योगदान कृषि क्षेत्र है. 2002-03 की जनगणना के अनुसार देश की 5,671,704 हेक्टेयर के आसपास की खेती की थी. अनाज, दालों, तिलहन, गन्ना और प्याज यहां उगाई प्रमुख फसलें हैं. उत्तराखंड की आबादी का बहुमत के बाद से कृषि क्षेत्र में कब्जा कर लिया है, कृषि उत्तराखंड अर्थव्यवस्था में राजस्व की शीर्ष योगदानकर्ताओं के बीच है.

इस के वाबजूद भी सरकार का कोई ध्यान कृषि की तरफ नहीं नहीं, आज भी किसानो , को टाइम से पानी , सही बीज , उर्वरक नहीं मिल पा रहे है, न ही उनको मोसम की सही जानकारी मिल पति है, जिस के कारन की किसान की शिस्ती आज भी उत्तराखंड  मैं सोचानिये है.

एक अन्य महत्वपूर्ण घटक है जो उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है अपने खनिज संसाधनों है. राज्य में चूना पत्थर रॉक फास्फेट, डोलोमाइट, मैग्नेसाइट, तांबा ग्रेफाइट, साबुन पत्थर, जिप्सम और कई दूसरों जैसे खनिजों के बड़े संसाधनों के होते हैं. इन खनिजों में से कई भारत का निर्यात कर रहे हैं जिससे उत्तराखंड अर्थव्यवस्था अधिक राजस्व दिलवाता है.


2003 में, निवेशकों के लिए उदार कर लाभ के साथ राज्य के लिए एक नई औद्योगिक नीति शुरू किया गया था कि पूंजी निवेश का एक विशाल लहर करने के लिए नेतृत्व किया गया है. SIDCUL, उत्तराखंड राज्य औद्योगिक विकास निगम राज्य के दक्षिणी परिधि में सात औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना की है, जबकि पनबिजली बांधों के दर्जनों के ऊपरी भाग में बनाया जा रहा है

नीचे दिए गए आकडे (per -Capita Income चार्ट है )








उत्तराखंड राज्य विकास की समस्या:-उत्तराखंड के लोग जो मुख्य समस्यों से जूझ रहे है वो निम्लिखित है.

पानी की समस्या:-

आजादी के ६३ साल बाद भी उत्तराखंड के गाँव मैं पानी की समस्या दिन प्रति दिन भयानक रूप लेती जा रही है और किसी को एस की सुध नहीं है गाँव मैं जितने भी प्र्कार्तिक सोत्र थे या है वो सुकते जा रहे है जिस के कारन लोगो का गाँव मैं रहना मुस्किल होता जा रहा है, पानी हमारी मूल आवश्कता है और हमारी सरकार हमे अपनी तक नहीं दे पा रही है, जिस के कारन लोगो को भारी पानी की समस्या से दो चार होना पद रहा है, कुछ गाँव मैं तो 3 -4  दिन मैं एक बार पानी आता है.


आधा अधुरा विकास:-

 अगर बात करे  विकास की तो समझ मैं नहीं आ रहा है, की ये विकास आधा अदूर क्यों हो रहा है सरे विकास के कम पहले से विकसित छेत्रों मैं चल रहे है, जहा पर  विकास नहीं हुआ है वहा अभी भी नहीं हो रहा है, उसके कई करना हो सकते है उनकी दुरी उनकी भागोलिक इसथी और लोगो को जानकारी का आभाव, इसे कोन दूर करेगा, ये सरकार का काम है की लोगो को उनके अधिकारों के लिए जागरूक कर, गाँव को जायदा अधिकार दिए जाये. सव्लाम्बी बनाने मैं उनकी मदद की जाये.


बिजली की समस्या:-
आज भी उत्तरांचल के गाँव मैं बिजली की समस्या बनी हुई है आजादी की ६३ साल राज्य बन्ने के १२ साल बाद भी उत्तरांचल की कई गाँव मैं आज तक बिजली की कनेक्शन नहीं पहुच पाए है, और जिन गाँव मैं बिजली है भी तो ये कोई नहीं बता सकता की ये कब लुका छुपी का खेल पहुच जाये, और मैं एस बात को विडंबना ही मानता हु की जिन गाँव मैं बिजली तो नहीं पैर व पैर फ़ोन पहुच गए है, जो की पिछले १० सालो मैं हमरे देश मैं आया है, कब सरकार को ये लगेगा की फ़ोन, से जायदा जरूरी है बिजली एस के कारन लोगो अपने बच्चो  को पड़ा नहीं पा रहे है! और अब तक दुनिया से कटे रहते है, 


सड़क:-

अगर बात करू सडको की तो आज भी उत्तराखंड के करीबन 65 % गाँव को सरकार सडको से नहीं जोड़ पाई है, जहा पर सड़के गयी भी है वह पर सडको की सुध लेने वाला कोई नहीं है सड़के सिर्फ नाम की रह गयी है, जिस के कारन पहाड़ी छेत्रो मैं रहने वाले लोगो तो आज तक बहुँत सारी समस्यों से दो चार होना पड़ता है. आज भी उनको अपनी जरूरत की चीजो को बहुँत दूर तक अपने सर पैर उठा कर ले के जाना पड़ता है.


चिकित्सा व्यवस्था:-

उत्तरखंड मैं आज भी चिकित्सा व्यवस्था की भारी कमी है, खास कर गाँव के लोगो को जहा पर  की किसी प्रकार की सुविधाओ का आभाव है, हॉस्पिटल पहले तो है नहीं अगर है भी तो 15 -20  किलोमीटर से जायदा दूर है अगर आप किसी तरह से हॉस्पिटल पहुच भी गए तो वह पैर अगर आप को डोक्टर मिल जाये तो ये आपकी बड़ी ही खुस नसीबी है, डॉक्टर साहब ने देख लिया तो हॉस्पिटल मैं दविया नहीं मिलेंगी, सरकार ने 108  नंबर से एक अमबुलंस वयवस्था सुरु करी है पर उस मैं मरीजों को कितना फायदा हो रहा है ये एक परशन चिन्ह है अपने आप पैर.


शिक्षा का स्तर:-
 अगर की सिक्षा के स्तर की बात करू तो भले ही उत्तराखंड को शिक्षा का हब कहा जाता है पर आप और मैं ये जानते ही की यह की प्रकार का हब है, नाम बड़े और दर्शन छोटे गाँव मैं पढने के लिए स्कूल नहीं है वेसे सरकार ने कोसिस तो करी पैर सायद अभी भी बहुँत कुछ करने की जरूरत है, शिक्षा के स्तर को सुधरने के लिए सबसे पहले वह पर सही शिसको की भारती जरूरी है! और स्कूलों की मूल्भुँत अवस्क्ताओ को पूरा करने की जरूरत है!




रोजगार:- 




अगर समस्याओ की बात करे तो सब से बड़ी समस्या रोजगार की क्योकि जितने भी औद्योगिक चेतर बनाये गए वो सभी पहाड़ी इलाकों मैं नहीं है वो सब समतल भूमि पैर है जब तक हम एस विकास को उनलोगों तक नहीं पंहुचा पा रहे अह जिन को इस की असल जरूरत है, जब तक हम उन जरूरतमंदो को एन सुविधाओ को आम आदमी तक नहीं पंहुचा पाएंगे तब तक आप किसी भी तरीके की उथान की बात नहीं कर सकते.  
उत्तराखंड अर्थव्यवस्था भी अपनी लघु उद्योगों पर निर्भर करता है, हालांकि वे उच्च राजस्व प्रदान नहीं करते. राज्य बन्ने के पश्चात अब इस मैं थोड़ी सी तेजी आई है पैर यह भी तेजी सिर्फ और सिर्फ मैदानी भागो मैं आई है जब की उत्तराखंड की मुख्य आबादी का बड़ा भाग गाँव मैं रहता है, जहा पर की अभी भी बहुँत कुछ करने की जरूरत है जब की हम जानते है की हमरे पास किसान और पयटन ही हमारे बड़े आय के साधन है तो हमे उन पैर और जायदा कम करने की जरूरत है, किसनो के पास आज भी बारिश के अलावा कोई और पानी का साधन नहीं है, लेकिन सरकार मैं बेठे हुए लोगो को इस बात से कोई फरक नहीं पड़ता है, जितने भी प्रसिद पयटन स्थल है वह पैर सफाई के सही उपाय नहीं हो रहे है जिस के कारन वहा पर भी अब गंदगी का जमवाडा हो गया है!

पलायन की समस्या:-
यह एक सिक्के के दो पहलु जेसी है बात है जब तक हम विकास के कार्यो को गाँव तक नहीं पंहुचा पाएंगे, गाँव मैं और अधिक आर्थिक कार्यो को रफ़्तार नही दे यानेगे तब तक उत्तराखंड के गाँव से पालयन की समस्या बनी रहगी और एस तरह से हमें अपने उत्तराखंड से पालयन करना पड़ेगा ही, अगर मैं आज उत्तरखंड मैं रोजगार की बात करू तो जो लोग सरकारी नुकरी करते है उन मैं सब से बड़ा हिस्सा फोज मैं भर्ती हुए लोगो का है, और दुसरे जो लोग शिक्सक की नोकरी कर रहे है उस के सिवा आज भी गाँव मैं रोजगार का कोई साधन नहीं है, एसे मैं गाँव से पालयन होंगा सभाविक है! पालयन को और बदने मैं हमारी शिक्षा वय्व्स्ता का भी बड़ा हाथ है, जिस के कारन भी लोग गाँव से सहरो की तरफ पालयन करने लगे है!



गर मैं बात करू भारत के अन्य पहाड़ी राज्यों की, तो मैं देखता हु की उत्तरखंड राज्य उन राज्यों के मुकाबले आज भी बहुँत पिछड़ा हुआ है, आप चाहे रोजगार की बात करे, चाहे विकास की बात करे चाहे शिक्षा की बात करे, अब भारतीय रेल को ही देख लो आज तक कोई भी रेल उत्तराखंड के किसी गाँव को नहीं जोड़ पाई है, जब की अगर हम देखे तो हम पाएंगे की हमरे हमारे जेसे और राज्य जेसे की हिमाचल परदेश, नोर्थ ईस्ट के राजोय मैं हमारे  तुलना मैं कही जायदा विकास है! एस के पीछे क्या बात है वह के सरकारों की इछा सक्ति, और दूसरा उन राज्यों का मुख्य धारा मैं न होना, कभी कभी तो एसा लगता है की राज्य सरकार तो पैसे का रोना रो देती है की उनके पास पैसे नहीं है विकास के कार्यो को करने के लिए और केंद्र सरकार एस तरफ कोई ध्यान  नहीं देती है, एस पर मुझे एक बात समझ मैं आती है की अगर "बचा नहीं रोता है तो माँ भी दूध नहीं पिलाती है अगर एसा हो तो क्या हमें भी रोने की आदत डालनी पड़ेगी, और हमें भी बिहार, झारखंड, नोर्थ ईस्ट की तरह से मोवोवादी या फिर नक्सली बनना पड़ेगा, क्या तब सरकार जागेगी, क्या तब विकास का काम होगा, क्या तब मिलेगा उत्तरखंड के लोगो को सम्मान, मैं एसा बिलकुल नहीं चाहता की हमारे लोग नक्सली बने, माओवादी बने, पर शायदं सरकार का रविया एसा ही रहा तो वो दिन भी दूर नहीं जॉब हम मैं से कुछ लोग एस रस्ते को भी अपना लेंगे...

इस लिए ये सोच है हम सभी के लिए और उन सभी राज्यों के लिए जो विकास की दोड़ मैं पिछाड रहे है, जरूरत है समुचित विकास की सभी राज्यों मैं....

अगर आपके इस बोलग से सब्म्बंती कुछ भी विचार हो तो आप अपना प्रति उत्तर जरूर लिखे मैं आपके दिए हुए, सुझाव का स्वागत करता हु....